सीमावर्ती 9 जिलों से भास्कर ग्राउंड रिपोर्ट / भगवान भरोसे मंजिलों का सफर, अकेले गुजरात से घर लौटे 60 हजार लोग, हजारों अभी भी राह में अटके

कोरोना महामारी में उपजे घर वापसी संकट ने हालात और बिगाड़ दिए हैं। रोजी-रोटी छिन जाने के बाद घर लौटे करीब सवा लाख मजदूरों और ग्रामीणों को किन हालातों का सामना करना पड़ा, भास्कर ने प्रदेश के सीमावर्ती 9 जिलों भिंड, मुरैना, नीमच, बुरहानपुर, झाबुआ, मंदसौर, बैतूल, छिंदवाड़ा, बड़वानी में ग्राउंड रिपोर्ट कर इसकी हकीकत जानी। किसी को मंगलसूत्र बेचकर राशन खरीदना पड़ रहा है तो कोई अपने गांव के बॉर्डर पर अटका है। कोई दो दिन भूखा रहकर गांव पहुंचा तो किसी ने 400 किलोमीटर पैदल चलकर अपनों के बीच पहुंचकर राहत की सांस ली। अकेले गुजरात से ही करीब 60 हजार लोग लौटे हैं। गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तरप्रदेश से सटी मप्र की सीमाओं पर लोगों के रुकने और समुचित जांच करने की व्यवस्था की जा रही है।


दो दिन भूखे रहे, रास्ते में सिर्फ दुत्कार ही मिली


(झाबुआ सेे दीपेश नागर)
मुरैना जिले के अजीत यादव पत्नी और दो बच्चों के साथ 4 साल से अहमदाबाद में हैं। वे बताते हैं कि लॉकडाउन के बाद हमारे पास दो दिन से ज्यादा रुकने, खाने-पीने का इंतजाम नहीं था। इसलिए 27 मार्च को एक ट्रक में बैठकर दाहोद तक आए। ट्रक में इतने लोग थे कि बच्चों का दम घुटने लगा। हम सभी भूखे थे, दाहोद में भी कुछ नहीं मिला। जैसे-तैसे पिटोल आए। यहां से मुरैना तक पहुंचने का साधन मिला। बामनिया के मुकेश वसुनिया ने बताया कि पत्नी और दो बच्चों के साथ 100 किमी पैदल चले हैं। रास्ते में पुलिस ने दुत्कारा तो कुछ लोगों ने पीटा। बीते 6 दिन में पिटोल बॉर्डर से एक लाख से ज्यादा लोग प्रदेश में आए हैं। इनमें करीब 40 हजार आसपास के जिलों के मजदूर हैं। शनिवार से गुजरात परिवहन ने बॉर्डर तक छोड़ने के लिए बसें शुरू कीं, लेकिन रविवार को उन्हें बंद कर दिया। 



मंगलसूत्र बेचा, भूखे बच्चों के पेट की आग बुझाई


(मुरैना सेे रजनीश दुबे)
रविवार सुबह यहां गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली से करीब 5000 लोग पहुंचे। इनमें से 2500 को जांच के बाद होम क्वारेंटाइन कर दिया गया। चार के सैंपल लिए गए, इनमें दो के निगेटिव आए। दिल्ली से मुरैना पहुंचीं टीकमगढ़ निवासी जयदेवी खंगार ने इस सफर में जो कुछ भुगता, वो बताया। बोलीं- 24 मार्च के बाद दो दिन हम रुके रहे, लेकिन जब पैसे खत्म हो गए, तो मंगलसूत्र बेचकर 4 हजार रु. मिले, जिससे राशन खरीदा। वह खत्म हुआ तो घर की ओर पैदल चल दिए। एक दिन जैसे-तैसे निकाला। मुरैना आकर लोगों ने मेरे बच्चों को खाना देकर भूख मिटाई। करीब 3000 लोग ट्रक व ट्रॉला से, तो अहमदाबाद से 800 लोग रिक्शा से अंबाह, पोरसा, दिमनी, खड़ियाहार, जौरा, कैलारस व सबलगढ़ पहुंचे। रास्ते में चना, गुड़ और लाई ही काम आई।


पिता की मौत की सूचना, 1000 किमी के पैदल सफर पर चल दिए


(बुरहानपुर से संजय वारूड़े)


महाराष्ट्र के सीमावर्ती क्षेत्रों से करीब 200 लोग 100 किमी तक रेल पटरी के किनारे चलते हुए बुरहानपुर पहुंचे। यहां से कुछ खंडवा निकल गए। अपनी बेबसी की आपबीती बताते हुए अलीगढ़ से पांच दास्तों के साथ भुसावल गए मोहम्मद बताते हैं कि शनिवार को पिता की मौत की सूचना मिली। कोई साधन नहीं था तो अलीगढ़ तक एक हजार किमी पैदल चलना शुरू किया। 30 घंटे में सिर्फ दो बार पानी पीने मिला। बुरहानपुर आकर कलेक्टोरेट में एसडीएम ने खाने की व्यवस्था की और खंडवा की सीमा तक वाहन से पहुंचाया। जलगांव की पाइप फैक्ट्री में काम कर रहे यूपी के 10 मजदूर घर लौट रहे हैं। इनमें शामिल जग्गा श्रीवास्वत ने बताया कि खंडवा सीमा तक छोड़ने के लिए वाहन हैं।


न सैनिटाइजर, न ही मास्क; खाने के पैकेट देकर बसों में ठूंस दिया


(नीमच से अभिषेक विद्यार्थी)
जावद ब्लॉक का नया गांव राजस्थान की निंबाहेड़ा सीमा से सटा है। लॉकडाउन के बाद से करीब 1400 लोग जावद और 750 लोग सिंगोली के रास्ते यहां पहुंचे हैं। प्रशासन भी 5 बसों से मजदूरों को रवाना कर चुका है। रतलाम के छोटी सर्रा गांव के कमलेश रावत 20 साथियों के साथ घर निकले हैं। उन्होंने बताया कि हमारे पास न तो सैनिटाइजर था और न ही मास्क। बसों में बिना सुरक्षा इन्हें ठूंसा गया। यहां क्वारेंटाइन की कोई व्यवस्था नहीं है और थर्मल स्क्रीनिंग भी नहीं की गई। हालांकि खाने के पैकेट दिए गए। मजदूर सुरेश बारगी ने बताया कि बच्चे 24 घंटे भूखे रहे। रविवार सुबह खाना मिला। नीमच में जावद, नयागांव, दामोदपुरा, डीकेन, सिंगोली के 2100 से ज्यादा लोग फंसे हुए हैं।



भूखे पेट 400 किमी चले, पैरों में कई जख्म, लेकिन घर पहुंच ही गए


(भिंड से अबनीश श्रीवास्तव)


जयपुर की बिस्कुट कंपनी में काम करने वाले अकलोनी निवासी गोलू भदौरिया ने बताया कि 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लगते ही कंपनी बंद हो गई। एक-दो दिन तो जैसे-तैसे गुजार लिए, लेकिन 26 को भूखे ही सोना पड़ा। 27 को मैं और मेरे दो दोस्त पैदल ही घर निकल आए। 60 किमी चलकर दौसा पहुंचे। यहां से एक कैंटर वाहन मिला, जिसने हमें भरतपुर छोड़ा। फिर भूखे पेट ही 30 किमी पैदल चले। धौलपुर में बस मिली, जिसने मुरैना छोड़ा। यहां से गांव-गांव होते हुए सिंहोनिया तक पहुंचे। पैरों में जख्म हो गए हैं, लेकिन सुकून है कि घर आ गए। बीते चार दिन में गुजरात, महाराष्ट्र, दिल्ली, उप्र से करीब 1200 लोग भिंड आ चुके हैं।


सिर्फ 60 किमी की मुश्किल, बाद में खाना-वाहन सब मिल रहा
(बडवानी से सचिन जायसवाल)

एबीरोड पर सेंधवा से 16 किमी दूर बड़वानी जिले का अंतिम गांव बड़ी बिजासन माता मंदिर है। यहां से महाराष्ट्र शुरू होता है। ट्रक, टैंपो, टैक्सी, बाइक और पैदल, जिसे जो साधन मिल रहा, वो वैसे ही करीब 60 किमी का सफर कर महाराष्ट्र के पलासनेर गांव पहुंचना चाह रहा, क्योंकि यहां जांच चौकी बनाई गई है, जिसमें सेंधवा विकासखंड का स्वास्थ्य व पुलिस अमला है। दो से तीन दिन में करीब 50 मजदूरों के यहां नाम-पते लिखे गए और मंदिर में खाना खिलाया गया। यहां से इन्हें गाड़ियों से गांव भेजा जा रहा है। सेंधवा में बीते 6 दिन में 700 से अधिक लोगों की जांच की जा चुकी है।



दो हजार से ज्यादा मजदूर अटके
(मंदसौर से सप्रिय गौतम)

जिले का भानपुरा, शामगढ़ ब्लाॅक राजस्थान के झालावाड़ रामगंजमंडी, भवानीमंडी बाॅर्डर से सटा है, इसी तरह दूसरा शहर का राजपुरिया राजस्थान के प्रतापगढ़ से सीधा संपर्क में है। करीब 2 हजार मजदूर यहां अटके हुए हैं। यहां न सैनिटाइजर है और न ही मास्क, जांच भी नहीं हो रही। इससे पहले करीब 30 बसों व छोटे वाहनों से 2000 मजदूरों को आलीराजपुर, झाबुआ, राजस्थान के कोटा, झालावाड़ा, जोधपुर भेजा जा चुका है। मंदसौर में शासकीय भवनों में मजदूरों को रुकवाया गया है, लेकिन यहां न दवा है न जांच। सिर्फ खाने के पैकेट दिए जा रहे हैं।


65 किमी पैदल चलकर मप्र सीमा पर आए, एक रात भूखे रहे
(छिंदवाड़ा से पीकेएस धुर्वे)

सिवनी निवासी बैगा चौधरी 14 मजदूरों के साथ महाराष्ट्र के वर्धा से चले। 65 किमी पैदल सफर कर सभी नागपुर पहुंचे। यहां भूखे ही सोना पड़ा। बाद में महाराष्ट्र प्रशासन ने इन्हें सीमा तक छुड़वाया। मप्र सीमा पर सातनुर में इनकी जांच की गई। चौधरी ने बताया कि रविवार को हमारे पास खाने को कुछ नहीं था तो दोपहर में एक स्वयंसेवी संगठन ने खाना खिलाया। जिले से अब तक करीब 7 हजार लोग घर लौटे हैं। इनमें से 101 विदेश से आए हैं, जिनमें से 90 की स्क्रीनिंग की जा चुकी है। 2085 को आइसोलेट किया गया है।


महाराष्ट्र बॉर्डर पर 5 बैरियर, आठ दिन में 6694 लोग लौटे
(भैंसदेही से गोकुल प्रसाद मालवीय)

बैतूल जिले की महाराष्ट्र सीमा पर पांच चौकियां बनी हैं। गौनापुर चौकी से 649, अंजनगांव से एक हजार, हीरादेही से 45, भैंसदेही के जनोना से 3 हजार, डोमा बेरियर से 2 हजार मजदूर प्रदेश में आए। हर चौकी पर भोजन का इंतजाम रहा। यहां स्क्रीनिंग भी की जा रही है। नागपुर से गांव मोरंड, खैरी, नागढाना पहुंचे 19 मजदूरों ने बताया कि सावनेर में नाश्ता और मुलताई में खाना मिला। नागपुर से सावनेर तक हम पैदल ही आए। मुलताई के सरकारी अस्पताल में हम सभी की कोरोना जांच की गई। रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद ही हमें आगे बढ़ाया गया।



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